Friday, September 29, 2017

तलाश

भटकता रहता हूँ,
लेकर अपना तन को,
ताकि मिल सके सुकून,
मेरे इस मन को।

तलाश जारी रहती है,
ना जाने किस सुकून की,
दिन-रात, सुबह -शाम,
यहां -वहां, इधर-उधर।

भटकाव खत्म नही होता,
इच्छाएं कभी नही मरती,
अभिलाषा जिंदा रहती है,
मरता हूँ तो सिर्फ मैं।

पल-प्रतिपल, क्षण-प्रतिक्षण,
कभी न बुझने वाली आग,
दिल मे जलाये रखता हूँ, या
खुद जलता रहता हूं।
जितेंद्र

Friday, September 22, 2017

उलझने

हज़ारों उलझने राहों में,
और कोशिशें बेहिसाब,
इसी का नाम है जिंदगी,
चलते रहिये जनाब।
अज्ञात