Friday, June 22, 2012

मेरी दुनिया;;

"जौनपुर का क्षितिज"
 नीलांचल, दूर क्षितिज ,
शीतल हवा और प्रकृति,
मीलों फैली हरियाली,
और उसमे उसकी अनुकृति.

कलरव कूजित पक्षी,
शांत अथाह समुन्दर, 
झील सी गहरी आँखे,
जिसमे डूबा मेरा मन.

निशा; तुम्हारे केश,
यह रूप-रंग, यह भेष,
कुछ तो है इनमे विशेष,
मैं खोया; नहीं कही कुछ शेष.

क्षितिज पे छाई लालिमा और,
तुम्हारे हांथों की मेहंदी,
बस एक तुम्हारी मुस्कान,
मेरी पुरे दिन की थकान .

जा रहा है पक्षी समूह,
और खो रहा उजियारा,
खो रहा है यह तेज,
और छा रहा अँधियारा.

जाते हुए से पल,
कितने सुन्दर लगते है.
खोये-खोये से हम,
कितने प्यारे  लगते है.

थक गया सा हूँ,
खुद में ही खो गया सा हूँ,
दुनिया की इस भीड़ में,
तनहा सा हो गया हूँ.

बेमतलब है यह प्रेमदिवस,
बेकार सी है यह दुनिया,
बोझिल सी थकी हुयी संध्या,
बोझिल ही मेरी दुनिया.


 जीतेन्द्र  गुप्ता 

Wednesday, June 20, 2012

nobody wants to talk to me;;

Yes; it's true. Nobody wants to talk to me. What happens to me? I could not figure it out. Is there something wrong with me or something wrong with anybody else????

Sunday, June 3, 2012

PG days;;

a glimse of post graduate days of my life;; you can see Narendra, Me, Vineet, Rishabh, Satyam and Daisy;;