Sunday, October 20, 2013

'प्रेरणा'

‘सर’ कक्षा में विद्यार्थिओं को ‘प्रेरणा’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे और विद्यार्थिओं में ही उनका एक विद्यार्थी, ‘ईश्वर’, यह व्याख्यान बड़े ध्यान से सुन रहा था.
“बच्चों! हमें हर एक चीज, हर एक जीव और हर जंतु से प्रेरणा मिलती है. यहाँ तक की रास्ते पर पड़ा एक निर्जीव पत्थर भी हमें कुछ न कुछ प्रेरणा अवश्य देता है. लेकिन यह पूरी तरह हमारे ऊपर है की हम उससे क्या प्रेरणा या सीख ग्रहण करते है. प्रेरणा जैसी यह बहुमूल्य चीज जो हमें इतनी बहुतायत से मिलती है, हम इसकी कदर बिल्कुल भी नहीं करते. जब की इस जीवन में हमें कुछ कर गुजरने के लिए केवल एक प्रेरणा की जरुरत होती है.”
ईश्वर, पूरी कक्षा के दौरान ‘सर’ की बात ध्यानपूर्वक सुनता रहा. इधर कई दिनों से वो बहुत दुविधा में था और अपने भविष्य को लेकर काफी चिंतित था. स्नातक की पढाई तो वो कर रहा था लेकिन आगे क्या करना है? जीवन में क्या बनना है? यह उसे समझ में नहीं आ रहा था.
उस दिन सारा वक़्त जागते हुए, और रात में बिस्तर पर लेटे हुए, ईश्वर सर की ही बात को सोचता रहा. “क्या उसे भी कहीं से प्रेरणा मिलेगी की उसे जीवन में क्या करना है, क्या बनना है?” ताकि सब लोग उस पर नाज़ कर सकें. और यही सोचते हुए उसे नींद आ गयी. सुबह जल्दी उठकर, अपनी  आदत के अनुसार, वो पास के ही कॉलेज में बने स्टेडियम में ‘सुबह की दौड़’ लगाने चला गया. कॉलेज के मैदान पर ईश्वर ने रोज की तरह दौड़ लगायी. एक, दो, तीन..... और जब तक वो थक नहीं गया. फिर स्टेडियम के किनारे बने सीढियों के पास, व्यायाम करने चला गया.
Inspiration
वहां और भी लोग थे पर सब अपने में मशगूल थे. किसी को किसी की परवाह नहीं थी. ईश्वर और दिनों की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा दौड़ा था, पर किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया. ईश्वर अपना व्यायाम करने में व्यस्त हो चुका था, की तभी उसके बगल में कुछ दुरी पर बैठा एक लड़का चिल्ला पड़ा- “जय हिन्द सर!” ईश्वर को कुछ अटपटा सा लगा. उसने उस लड़के की तरफ देखा, फिर मैदान की तरफ देखा. वो लड़का मैदान पर दौड़ रहे किसी शख्श के लिए चिल्लाया था, जिसने उस लड़के की तरफ ध्यान नहीं दिया था. ईश्वर भी, फिर से, अपना व्यायाम करने में व्यस्त हो गया. वो लड़का जो चिल्लाया था, अपने एक दोस्त से बातें कर रहा था. और ईश्वर के पास उनकी आवाजें आ रही थी.
“देख रहे हो, कितनी छोटी उम्र के है और पैर से कुछ विकलांग भी है, पर फिर भी पांच-छह लोंगो को दौड़ में पीछे छोड़ दिया.” वो लड़का अपने दोस्त से कह रहा था.
“लेकिन वो है कौन?” दुसरे लड़के ने पूछा.
“अरे तुम उनको नहीं जानते? वो इस जिले के ‘डी.एम.’ है. आज अपनी पढाई के बल पर इस मुकाम पर पहुंचे है.” उस लड़के ने कहा.
ईश्वर ये बातें सुन रहा था, और उत्सुकतावश वो भी व्यायाम करना छोड़कर ‘डी.एम.’ साहब की तरफ देखने लगा. “वो बिलकुल हमारे जैसे ही तो है बल्कि एक पैर से थोड़े विकलांग ही है. फिर भी आज उस मुकाम पर है जहाँ पहुँचने का लाखो लोग सपना देखते है.” ईश्वर सोचने लगा. “पर मेरे पास तो सब कुछ है, पढाई में होशियारी, पढने के लिए समय और घर-परिवार का सहारा, सब-कुछ.” ईश्वर ‘डी.एम.’ साहब की तरफ देखता रहा, पर उसके मन में एक उधेड़बुन चलनी शुरू हो गयी थी.
‘डी.एम.’ साहब ने अपनी दौड़ पूरी कर ली थी और वो लोग जो शरीर से सही-सलामत थे, डी.एम. साहब को पीछे नहीं कर पाए थे. मैदान के किनारे बैठे लोंगो ने डी.एम. साहब के लिए तालियाँ बजानी शुरू कर दी थी. जैसे की लोग ओलंपिक दौड़ में ‘उसैन बोल्ट’ के लिए तालियाँ बजा रहे हो.
“उनके दौड़ने में ऐसी क्या खास बात है जो मेरे दौड़ने में नहीं थी? दौड़ा तो मैं भी था?” ईश्वर सोचे जा रहा था की उसे अहसास हुआ की लोग तालियाँ क्यों बजा रहे थे? “आज वो जिस मुकाम पर है, अपने-आप में एक हस्ती है. लोग उनकी दौड़ के लिए तालियाँ नहीं बजा रहे थे, बल्कि लोग उनकी हस्ती को सलाम कर रहे थे.”
“एक दिन मेरे लिए भी, लोग ऐसे ही तालियां बजायेंगे.” ईश्वर ने अनायास ही सोचा. और उसे यह महसूस हुआ की उसे उसकी ‘प्रेरणा’ मिल चुकी थी, की ‘उसे इस जिंदगी में क्या करना है? क्या बनना है?’ ईश्वर अपना व्यायाम पूरा कर चुका था और उसने घर की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए.......

जितेन्द्र गुप्ता