Monday, November 6, 2017

दो जिंदगी.....

अब दो जिंदगियां,
जीने की सोचता हूं,
एक अपने लिए,
एक तुम्हारे लिए।

तुम्हारी भावनाये समझूं,
उसका सम्मान करू,
अपनी भावनाएं,
अपने तक रखूं, तुमसे न कहूं।

मैं तो सक्षम हूं,
तुम्हारी भावनाये समझ लूंगा,
पर शायद अभी तुम,
मेरी भावनाये न समझ सको।

कोशिश की थी,
पर मैं गलत था,
तुमसे उम्मीद लगा ली,
कि तुम मुझे समझोगी।

आगे से अब नही कहूंगा,
तुमसे अपने मन की बाते,
अपने विचार, अपनी इच्छाएं,
प्यार वाली गाली, अपनी दुविधाएं।

तुम मेरे हमसफर हो,
ये बात तुम्हे याद हो न हो,
मैं याद रखूंगा आगे से,
हर वक़्त, हर पल, प्रतिक्षण।

जो कहोगी, करूँगा।
जैसे कहोगी, रहूंगा।
तुम मेरे खांचे में मत ढलो,
मैं तुम्हारे खांचे में ढल जाऊंगा।

जी लूंगा एक और जिंदगी,
तुम्हारे लिए, ताकि तुम खुश रहो।
खुद को मैं संभाल लूंगा,
इतना सक्षम हूं मैं, इतना समर्थ हूं मैं।

इस तरह शायद,
मैं तुम्हे पा लूंगा।
पर शायद तुम,
मुझे कभी पा सको।

जितेंद्र

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