जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है|
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है |
जीने का अंदाज़ बदलने वाला हूँ
अपनी ही फ़ित्रत को छलने वाला हूँ
मेरे दुश्मन भी अब खुश हो जायेंगे
अपने सारे राज़ उगलने वाला हूँ
दुनिया है भूगोल बदलने में मशरूफ़
मैं झूठा इतिहास बदलने वाला हूँ
अपने अपने हिस्से का सूरज रख लो
बाक़ी को मैं आज निगलने वाला हूँ
जिसने मेरी चाहत को ही छीन लिया
अपना वो भगवान बदलने वाला हूँ
दरिया! अपनी गहराई पर फ़ख़्र न कर
मैं तेरी लहरों पर चलने वाला हूँ
मेरे भीतर कोई आग दहकती है
मैं उसमें चुपचाप पिघलने वाला हूँ
धीरे धीरे सारे आँसू पी डाले
अब मैं दर्दो ग़म को खलने वाला हूँ
औरों की बैसाखी बन कर खूब चला
अपना जिस्म उठाकर चलने वाला हूँ
पिघला हूँ जिसकी चाहत की शिद्दत से
उसके ही साँचे में ढलने वाला हूँ।।
चिराग कैसे मजबूरियाँ बयाँ करे,
हवा जरूरी भी डर भी उसी से है।
एक मुख़्तसर सी वजह है.....मेरा सबसे झुककर के मिलने की,
मिट्टी की बनी हूँ ना....गुरुर जचता नहीं मुझ पर.....
*खुद को पढ़ता हूँ*
*फिर छोड़ देता हूँ*
*रोज़ ज़िन्दगी का एक*
*पन्ना मोड़ देता हूँ...
बताऊँ तुम्हें खाशियत उदास लोगों की ,
कभी गौर करना ये हँसते बहुत हैं ।।
*उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा*
*जमींर हमसे बेचा ना गया,*
*वरना शाम तक अमीर हो जाते..!*
*वाकिफ़ तो हम भी हैं मशहूर होने के तौर तरीकों से,*
*पर ज़िद तो हमें अपने अंदाज से जीने की है।*
कुछ लोग तालियों के तलबगार नहीं होते ;
वो वाह वाह के मोहताज नहीं होते,
जो पैदा हुए हो जमीन ऑसमा एक करने के लिए
वो किसी आधार के मोहताज नहीं होते .
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी भी सीख ले गालिब,
ऐब न हों.
तो लोग महफ़िलों में भी नहीं बुलाते.
*ख्वाहिशें आज भी*
*“खत” लिखती हे मुझे*
*बेखबर इस बात से कि,*
*जिंदगी अब*
*अपने “पते” पर नही रहती...*
आसमा पे ठिकाने
किसी के नही होते,
जो जमीन के नही होते,
वो कही के नही होते।
चेहरे और पोशाक से आंकती है दुनिया..
रूह में उतर कर कब किसी के झांकती है दुनिया।
दौड़ती भागती दुनिया का यही एक फलसफा है.
खूब लुटाते रहे अपनापन, फिर भी लोग खफा है।
मैं इंतिज़ार में हूँ तू कोई सवाल तो कर
यक़ीन रख मैं तुझे ला-जवाब कर दूँगा
मुझे यक़ीन कि महफ़िल की रौशनी हूँ मैं
उसे ये ख़ौफ़ कि महफ़िल ख़राब कर दूँगा
सफ़र जारी रखो
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो!
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो!!
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें!
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
बहुत अंदर तक जला देती है,
वो शिकायतें जो बयाँ नही होती.
रास आ गये हैं कुछ लोगों को हम
कुछ लोगों को ये बात रास नही आई
रस्सी जैसी जिंदगी...तने-तने हालात.....
एक सिरे पे ख़्वाहिशें...दूजे पे औकात....!
काश कोई देखने वाला होता
एक यह ज़िद कि कोई ज़ख्म न देख पाए दिल के मेरे
और एक यह हसरत कि काश कोई देखने वाला होता
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .
एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा,
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे .
ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा,
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .
हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत,
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .
ख़याल से भी खूबसूरत था वो , ख़्वाब से ज्यादा नाजुक
गवां दिया हमने ही उसको , देर तक आज़माने में ..
हमारी खताओं का हिसाब रखते जाना
उनकी अदाओं का हिसाब मुमकिन नहीं
जो लौट आएं तो कुछ कहना नहीं बस देखना उन्हें गौर से
जिन्हें मंज़िलों पे खबर हुई के ये रास्ता कोई और था
भूलने लगे जो विसाल-ए-यार गुज़रे
लम्हात-ए-याद मगर यादग़ार गुज़रे
कट गई तमाम शब देखते देखते
रात तेरे ख्वाब .. मददगार गुज़रे
फ़क़त एक इश्क़ से घबरा गए आप
ये हादसे संग मेरे .. कई बार गुज़रे
मिलो तुम हरदम महंगाई की तरह
उम्मीद लिए हम सरे-बाज़ार गुज़रे
ज़रुरतमंद हूँ ये ख़बर क्या फ़ैली
बचकर सरेराह दोस्त-यार गुज़रे
मुफ़्त अच्छी है शायरी ‘अमित’ की
कहते हुए दर से मेरे खरीदार गुज़रे
दायरा हर बार बनाता हूं ज़िदगी के लिए
लकीरें वहीं रहती है, मैं खिसक जाता हुँ।
तज़ुर्बा दोबारा कर लूं
तज़ुर्बा कहता है मोहब्बत से किनारा कर लूँ
और दिल कहता है ये तज़ुर्बा दोबारा कर लूँ
मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ
तअल्लुका़त की क़ीमत चुकाता रहता हूँ
मैं उसके झूठ पे भी मुस्कुराता रहता हूँ
मगर ग़रीब की बातों को कौन सुनता है
मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ
ये और बात कि तनहाइयों में रोता हूँ
मगर मैं बच्चों को अपने हँसाता रहता हूँ
तमाम कोशिशें करता हूँ जीत जाने की
मैं दुशमनों को भी घर पे बुलाता रहता हूँ
ये रोज़-रोज़ की *अहबाब से मुलाक़ातें
मैं आप क़ीमते अपनी गिराता रहता हूँ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले सेमरस्सिम ना सही फिर भी कभी तो
रस्मो राहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ
कुछ मेरे पिंडारे मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मानने के लिए आ
एक उमरा से हूँ लज़्जते गिरिया से भी महरूम
आईराहत-ए-जान मुझको रुलाने के लिए आ
ऐब तक दिले खुश-फहम को हैं तुझ से उम्मीदें
यह आख़िरी शमा भी बुझाने के लिए आ
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज ना जाने के लिए आ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
न मुल्क न शहर ना ये घर अपना
दिल से जाता नहीं है ये डर अपना
बर्फ पे नीले पड़े जिस्म उन नौनिहालो के
सांप भी रो पड़ते जिन्हें देते ज़हर अपना
कैस अब होते तो कहाँ बसर करते
सहरा में बसा है किसी का शहर अपना
रक़ाबत अपने बस का रोग न था
रकीब से कैसे बचाता मैं घर अपना
आज नहीं, तो कल निकलेगा
कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा निशाना साध,
जमीन से भी जल निकलेगा ।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा ।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा ।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा ।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा-थमा सा, वो चल निकलेगा ।
ज़हर देता है मुझे कोई दवा देता है
जो भी मिलता है गम को बढ़ा देता है
क्यूँ सुलगती है मेरे दिल में पुरानी यादें
कौन बुझते हुए शोलों को हवा देता है
हाल हस हस के बुलाता है कभी बाहों में
कभी माज़ी रो रो के सदा देता है
इतना तो किसी ने चाहा भी नहीं होगा
जितना सिर्फ सोचा है मैंने तुम्हें
डाले हुए हैं हम सबने अपने ऐबों पर परदे
और हर शख्स कह रहा है दुनिया खराब है
ख्वाब बोये थे हिज्र काटा है
इस मोहब्बत में बहुत घाटा है।
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