Sunday, September 9, 2012

तेरी जुस्तजू ...


जिंदगी के कुछ पल, जाने कहाँ खो गए,
आँखे खुली हुयी थी, और हम सो गए.

हमको नहीं किसी से, कुछ भी गिला-शिकवा,
हम तो सदा ऐसे ही थे, ऐसे ही रह गए.

ना सोचा क्या है करना, क्या है बनना बड़े होकर,
अभी तो हम नादान थे, कब इंसान बन गए?

बिन मांगे ही मुझको, दे दिया यूँ प्यार इतना सारा,
ना पूछा की क्यों वो इतना, मेहरबान हो गए?

दस दिन की जिंदगी थी, दो दिन  यूँ  जी लिया,
की बाकी बचे हुए दिन, बेकार हो गए.

जो जीती हमने बाज़ी, तो प्यार था सनम,
जो हार गए तुझको, बदनाम हो गए.

वो वक़्त की थी बाज़ी, या प्यार का इक नगमा?
जिए, जिसको गाकर, हम आबाद हो गए.

"जीतेन्द्र गुप्ता"

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