कुछ दिन के लिए बस,
मुझे प्यार हो गया था.
बातों-बातों में ही,
इकरार हो गया था.
पर यह इकतरफा प्यार,
ज्यादा दिन नहीं चला.
प्यार का भूत जब उतरा,
लगा मैं बीमार हो गया था.
शुरू में ही उसने मना किया था,
वो प्यार के अंजाम से डरती थी.
"इस प्यार का कुछ नहीं हो सकता!"
शायद वो बहुत सोचकर प्यार करती थी?
वो सही थी, पागल मैं ही था.
प्यार की हवाओं में बहता गया.
गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?
पर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?
जीतेन्द्र गुप्ता
वो सही थी, पागल मैं ही था.
ReplyDeleteप्यार की हवाओं में बहता गया.
गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?
पर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?
..kaun sahi kaun galat..pyar mein pahle kahan pahle chalta hai..sochne ke shakti pahle kahan rahti hai ..
bahut khoob!
YES YOU ARE RIGHT ITS TRUTH
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति जीतेन्द्र जी....
ReplyDeleteमासूम सी भावनाएँ हैं....
सच है प्यार सोच कर नहीं किया जाता...सोच कर तो सौदे और मसविदे तय होते हैं.....
अनु
गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?
ReplyDeleteपर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?sahi bat ..
वाह बहुत सुन्दर ह्रदय के उदगार हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...!!