Monday, September 17, 2012

एक शब्द: "प्यार"...

कुछ दिन के लिए बस,
मुझे प्यार हो गया था.
बातों-बातों में ही,
इकरार हो गया था.

पर यह इकतरफा प्यार,
ज्यादा दिन नहीं चला.
प्यार का भूत जब उतरा,
लगा मैं बीमार हो गया था.

शुरू में ही उसने मना किया था,
वो प्यार के अंजाम से डरती थी.
"इस प्यार का कुछ नहीं हो सकता!"
शायद वो बहुत सोचकर प्यार करती थी?

वो सही थी, पागल मैं ही था.
प्यार की हवाओं में बहता गया.
गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?
पर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?
 जीतेन्द्र गुप्ता

5 comments:

  1. वो सही थी, पागल मैं ही था.

    प्यार की हवाओं में बहता गया.

    गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?

    पर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?
    ..kaun sahi kaun galat..pyar mein pahle kahan pahle chalta hai..sochne ke shakti pahle kahan rahti hai ..
    bahut khoob!

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति जीतेन्द्र जी....
    मासूम सी भावनाएँ हैं....
    सच है प्यार सोच कर नहीं किया जाता...सोच कर तो सौदे और मसविदे तय होते हैं.....

    अनु

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  3. गर पहले सोच लेता तो मायूस न होता?


    पर इतना सोच कर तो प्यार किया नहीं जाता?sahi bat ..

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  4. वाह बहुत सुन्दर ह्रदय के उदगार हैं ...
    बहुत सुन्दर रचना ...!!

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