एक बार, एक धनवान परिवार का एक पिता, अपने बच्चे को कुछ दिन के लिए गाँव ले गया. वह अपने बच्चे को यह दिखाना चाहता था की गरीब लोग किस तरह अपना जीवन गुजर-बसर करते है.
गाँव में कुछ दिन और रात, उन लोंगो ने एक बहुत ही गरीब परिवार की झोपड़ी में बिताया.
जब वे लौटने लगे, तो रास्ते में पिता ने अपने बच्चे से पूछा, "गाँव में तुम्हारे दिन कैसे बीते?"
"बहुत ही शानदार!" बच्चा ख़ुशी से बोला.
"क्या तुमने यह देखा की गरीब लोग कैसे रहते है?" पिता ने उत्सुकता से पूछा.
"हाँ पिता जी!" बच्चे ने कहा.
"तो मुझे कुछ बताओ की तुमने क्या देखा?" पिता ने कहा.
बच्चे ने कहा, "पिता जी! मैंने देखा की हमारे पास हमारे घर में एक ही कुत्ता है, जब की उनके पास चार है. शहर में हमारे घर में बगीचे के बीच में एक ही तालाब है, जब की इनके पास पूरी की पूरी नदी है जिसका कोई अंत नहीं है. रात को हम अपने घर को बिजली के बल्बों से रोशन करते है, जब की इनके घर को रोशन करने के लिए हजारों सितारे रातभर जगमगाते है. हमारे घर की सीमा घर के सामने की चारदीवारी पर ख़त्म हो जाती है, जबकि इनके पास पूरा का पूरा क्षितिज है."
बच्चा कहता जा रहा था, "हमारे पास तो शहर में जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है जिस पर हमारा घर बना है, जब की उनके पास उनके खेत है जो हमारी नज़रों की सीमा से भी परे है. पिता जी! और क्या कहूँ की हम खुद अपना काम करने में खुद को अक्षम पाते है, इसीलए हमारे घर पर नौकर रखे गए है, जो हमारी सेवा करते है, जब की ये लोग खुद अपना काम तो करते ही है, दूसरों की सेवा भी करते है. हमें हमारे भोजन के लिए अन्न खरीदना पड़ता है, जब की ये अपने खेतों में अन्न उगाते है."
बच्चे का पिता निःशब्द हो चुका था.
और अंततः बच्चे ने कहा, "पिता जी मैं आपको धन्यवाद् कहना चाहूँगा!"
पिता ने पूछा, "वो किसलिए मेरे बच्चे?"
"यही की आपने हमें यह देखने और महसूस करने का मौका दिया की हम कितने गरीब है?" बच्चे ने कहा और चुप हो गया.
सौजन्य से: http://inspiringshortstories.org/how-poor-we-are/
अनुवाद: जितेन्द्र गुप्ता
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