सोचता हूँ की सोचने से क्या होगा?
लेकिन फिर भी कुछ देर सोचता हूँ.
मेरी ख़ामोशी के क्या निहितार्थ है?
यह उन्हें कौन और कैसे बता देता है?
जब उनकी नज़रें मुझसे उलझती है,
मैं कुछ नहीं कहता, बस उन्हें पढता हूँ.
बिना ये जाने, बिना ये समझे कि-
नयनों की भाषा मुझे समझ नहीं आती.
मैं कुछ-कुछ अनुमान लगाता हूँ,
शायद, वो मुझसे बेहद नाराज़ है.
पर हम दोनों गुमसुम ही रह जाते है,
कोई किसी से कुछ नहीं कहता.
अगर नाराज़ होना उनकी फितरत है,
तो खामोश रहना मेरी आदत.
मैं खुद को बदल नहीं पाता,
और वो मुझे बर्दाश्त नहीं कर पाते.
शायद यही वजह है, की हम अलग है.
हमारी मंजिलें अलग है, और रास्ते भी अलग.
और हम साथ बस उसी दोराहे तक थे,
जहाँ से हम हुए थे, एक-दुसरे से अलग.
जितेन्द्र गुप्ता
Image Courtesy: Vinayak Gupta |