Wednesday, December 14, 2011

ख़ामोशी;;

पहले प्यार की हर एक बात निराली होती है और जब भी आप पहले प्यार के बारे में सोचते है तो आप रोमांचित हो उठते है. उसकी यादें आपके साथ जिन्दगी भर बनी रहती है और आप उसको अपने दिल के किसी कोने में बहुत सहेज कर रखते है.
एक वक़्त था जब मैंने पहला प्यार किया था और वो ही मेरा आखिरी प्यार भी साबित हुआ. आज अचानक ही जब  उसका चेहरा नजरों में छा गया और उसके साथ बिताये कुछ खुशनुमा पलों को याद कर रहा था तो कुछ पंक्तिया अपने आप ही पन्ने पर साकार होती गयी. उसी अनुभव पर कुछ पंक्तिया प्रस्तुत है-


"ख़ामोशी" से बातें कर रहा था,
की वो आ गयी,
मुझे ऐसा लगा.

बातें रुक सी गयी,
और वक़्त थम सा गया,
पागल मन जो बेचैन सा था,
बस उसी में सिमट सा गया.

हां; शायद,
कुछ पल के लिए शायद,
बारिश रुक सी गयी थी.

साँसे तेज हो गयी थी,
और धड़कने बेगानी हो चली थी,
बदन तो पूरा शिथिल हो गया था,
और अन्दर एक तूफ़ान उठ चला था.

उजाले ने अँधेरे से दोस्ती कर ली थी,
और वो-मैं बस हम दोनों ही थे,
मेरी नजरें उसमे उलझती गयी,
और वो मुझमे लिपटती गयी.

जैसे कभी हम अलग थे ही नहीं,
इतने पास, इतने करीब,
जैसे मैं उसमे बहता गया दूर तलक,
और वो मुझमे सिलती गयी.

जैसे वो पूनम की रात थी,
और मैं व्योम विस्तार,
जैसे वो रजनी का प्यार थी,
और मैं उसका श्रृंगार.

मुझे लगा-
यह अनुभव कुछ अजीब था,
पर तभी यह महसूस हुआ,
की मैं सपने में चूर था.
 
फिर भी.....
वैसे....
कुछ बातें यूँ ही नहीं हो जाती.......

                                                                                                                 © जीतेन्द्र गुप्ता

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया...
    बड़ी अच्छी तरह से कविता का फ्लो बनाया है...
    और अंत तो लाजवाब...
    बधाई...कविता के लिए...

    ReplyDelete
  2. वाह...! क्या बात है, बहुत सुंदर लिखा है आपने !
    मन को छु गया !

    आभार !!

    ReplyDelete