Saturday, December 10, 2011

उदासी;;;;




उदासी;;
ओ; मेरी प्रियतमा,
मैं जी रहा हूँ तो बस,
तेरे सहारे,
तेरे ही आँचल में,
तेरे किनारे.

कोई ना मिला तो,
मिली मुझको तू,
प्रेम से भरी, 
और शांत कितनी तू.

दुनिया जो रूठ जाए,
हर कोई छूट जाए,
मनमीत जो मेरे है,
वो भी ना पास आयें.

और जन्म के जो रिश्ते,
वो भी जो टूट जाए,
हो पास कोई दुविधा,
और जीवन लगे निरुपाय.

तब प्राण-प्रिये मेरी,
तू मुझको याद आये.

उदासी;;;
ओ; मेरी प्रियतमा....
जीतेन्द्र  गुप्ता

4 comments:

  1. वाह कहूँ या आह....
    उदासी से प्रेम!!!! अदभुद....

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  2. उदासी हमेशा अपनी होती है.....

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  3. जीतेंन्द्र जी....सुंदर रचना,..अच्छा प्रयास...इसे जारी रखे..

    मेरी नई पोस्ट...नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
    देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
    इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
    इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,.......

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