Friday, October 27, 2017

बोझिल दिन

पता नही किस शायर ने लिखा है की -
उसूलों पर जहाँ आंच आये,टकराना जरूरी है।
जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नज़र आना जरूरी है।
पर जिस किसी ने भी ये लिखा है मेरे ऊपर तो नही ही लिखा है। दीपावली पे घर आया, तो वापस जाने का दिल नही कर रहा था। दरअसल पीलीभीत जैसी छोटी सी जगह में आप कुछ सीख नही सकते। अगर आप आगे की पढ़ाई के लिए तैयारी करने चाहते है तो पढ़ सकते है किंतु वह माहौल नही है। इसके अलावा न तो वह आपको अंग्रेजी अखबार पढ़ने को मिलेगा, न ही प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पुस्तके। मैंने अपने स्वभाव में एक परिवर्तन गौर किया है। मुझमे काम से जी चुराने की प्रवित्ति बढ़ रही है। जब आप को अपने काम के बारे में जानकारी नही होती, तो जी चुराने की प्रवित्ति का पनपना स्वाभाविक है। मैंने अपनी पोस्टिंग के संदर्भ में एक लोग से ही बात की थी। पर उन्होंने कोई रुचि नही ली या कहे कि तत्कालीन परिस्थियां ऐसी थी कि अच्छी जगहे खाली नही थी। इसलिये मुझे समझ नही आया कि अपनी पोस्टिंग पे मैं खुश हो जाऊं या मातम मनाउ। ये शायद मेरे साथ हुआ एक घटिया धोखा था। अपनी पोस्टिंग के संदर्भ में मैंने जिनसे बात की थी, वो मेरे गांव के ही थे, मेरे विभाग में ही थे। पर उन्होंने मुझसे एक तरह से धोखा किया। आज कुल 6 महीने हो गए, पीलीभीत में आये हुए। पर यहा न तो मैं अपने कार्य के बारे में ज्यादा कुछ जान सका हु, न ही पढ़ाई पे ध्यान दे सका हु। त्रिशंकु बन के रह गया हूं। मेरे साथ ही ट्रेनिंग करने वाले कुछ महानुभाव अच्छी जगहों पे अपनी पोस्टिंग करवाने में सफल रहे थे। इसके अलावा आज ही एक और लिस्ट आयी, जिसमे मेरे ही बैच के अन्य अधिकारियों की पोस्टिंग का जिक्र है। निस्संदेह उनमे से बहुत से अधिकारियों को अच्छी जगहों पे बड़े स्टेशनो पे पोस्टिंग मिली है। पता नही क्यों, अच्छा नही लग रहा। जब मैं अपने पोस्टिंग की तुलना, आज के लिस्ट से करता हु, तो अहसास होता है, की जैसे हमारे साथ एक भद्दा मजाक किया गया है। पोस्टिंग को लेकर हुआ ये कड़वा भेदभाव मेरे मन को वेध रहा है, पीड़ा पहुंचा रहा है। ये कड़वा अनुभव मुझे याद रहेगा।
हालांकि पीलीभीत एक एकांत जगह है, बहुत शांत जगह है। बहुत लोगो को पता भी नही की पीलीभीत नाम की कोई जगह भी अस्तित्व में है। जब कोई मुझसे मेरी पोस्टिंग के बारे में पूछता है, और मैं जवाब देता हूं, की पीलीभीत, तो उसका अगला सवाल यही होता है, की ये कहा है? फिर मुझे उसे ये बताना पड़ता है कि पीलीभीत उत्तराखंड और नेपाल की सीमा से लगा एक छोटा सा जिला है। प्राकृतिक सुंदरता वहाँ भरपूर है, बाघ और अन्य जंगली जीव जंतु है, घूमने लायक जगह है, पर नौकरी की इस सीखने वाली स्टेज पे जिस जगह मेरी पोस्टिंग होनी चाहिए थी, वैसी हुई नही। 
आज दसवा दिन है, दीपावली पे जब मैं घर आया था। और अभी भी घर पे ही हु। कार्यालय पुरानी जगह से नई जगह शिफ्ट हो रहा है। इसलिए अभी कार्यालय का सेटअप ही हो रहा है। मैं कल निकल जाता, इलाहाबाद से मेरा रिजर्वेशन था। लेकिन ट्रेन बहुत लेट थी, इसलिए टिकट पे टी डी आर फ़ाइल किया, और इलाहाबाद से घर आ गया। अब परसो पीलीभीत निकलूंगा। बोझिल मन के साथ, नीरस आत्मा लिए हुए। पता नही कब ये भटकाव खत्म होगा। पता नही मैं क्या चाहता हूं, अपनी जिंदगी से क्या मांगता हूं, क्या करना चाहता हूं?

जितेंद्र

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