Friday, July 28, 2017

कुछ भी..

रोज़ सुबह होती है,
रोज़ शाम होती है,
हर एक दिन
ऐसे ही तमाम होती है।

दिन अब केवल
गिनती को रह गए है,
बस आये
और चले गए है।

न कोई आशा,
न ही अभिलाषा,
मन मे शून्य,
और दिल मे निराशा।

जितेंद्र

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