अम्मा पिछले कई दिनों से बीमार चल रही है, शायद एक महीने से ज्यादा हो गए है पर उसकी हालत में कोई सुधार नज़र नहीं आ रहा। आज शाम को घर के छत की बालकनी में बैठे हुए उससे बात कर रहा था। कह रही थी की उसे बहुत कमजोरी महसूस हो रही है। पहले तो थोड़ा बहुत खा भी लेती थी पर अब उससे खाना भी नहीं खाया जा रहा है। अम्मा यह जानती है की उसके गुर्दे (किडनी) में बैक्टीरियल संक्रमण हो गया है और ज्यादातर एलोपैथिक दवाइयाँ उस पर असर नहीं कर रही। यह एक विडम्बना ही है की जिसने अपनी सारी जिंदगी दूसरों का इलाज में और उन्हें दवाइयाँ देने में गुजार दी हो आज वो खुद अपनी बीमारी से जूझ रही है। और दूसरे ही क्यों अपने घर में भी हम सब जब-जब बीमार हुए अम्मा की दवाइयों से ही ठीक हुए।
पापा तो पिछले एक साल से अपने कोलेस्ट्रोल को लेकर बीमार चल ही रहे है। अब वो मुझसे ज्यादा बात भी नहीं करते। जब मैंने सिविल की तैयारी शुरू की थी तब वो मुझसे अक्सर मेरी पढाई के बारे में पूछा करते थे और उनका ये पूछना ही मेरे लिए प्रेरणा का कार्य करता था। उस वक़्त उनकी बातों से मुझे लगता था की मुझमे ये परीक्षा उत्तीर्ण करने की योग्यता है पर अब जब वो मुझसे बहुत कम बातचीत करते है तो मुझे लगता है शायद मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा हूँ। जब की मैं ये जानता हूँ की इस बीमारी की अवस्था में भी वो घर का कितना भार वहन कर रहे है। वो सुबह ही दुकान पर चले जाते है और देर शाम तक वही पर काम करते रहते है। घर के बाहर की सारी जिम्मेदारी भी उन्ही पर है। अम्मा का इलाज़ भी वही करवा रहे है। अगर उनकी जगह कोई और होता या मैं ही क्यों न होता तो शायद अब तक अपनी किस्मत से हार कर थक गया होता। पर थकना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं।
पापा तो पिछले एक साल से अपने कोलेस्ट्रोल को लेकर बीमार चल ही रहे है। अब वो मुझसे ज्यादा बात भी नहीं करते। जब मैंने सिविल की तैयारी शुरू की थी तब वो मुझसे अक्सर मेरी पढाई के बारे में पूछा करते थे और उनका ये पूछना ही मेरे लिए प्रेरणा का कार्य करता था। उस वक़्त उनकी बातों से मुझे लगता था की मुझमे ये परीक्षा उत्तीर्ण करने की योग्यता है पर अब जब वो मुझसे बहुत कम बातचीत करते है तो मुझे लगता है शायद मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा हूँ। जब की मैं ये जानता हूँ की इस बीमारी की अवस्था में भी वो घर का कितना भार वहन कर रहे है। वो सुबह ही दुकान पर चले जाते है और देर शाम तक वही पर काम करते रहते है। घर के बाहर की सारी जिम्मेदारी भी उन्ही पर है। अम्मा का इलाज़ भी वही करवा रहे है। अगर उनकी जगह कोई और होता या मैं ही क्यों न होता तो शायद अब तक अपनी किस्मत से हार कर थक गया होता। पर थकना तो जैसे उन्हें आता ही नहीं।
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