Monday, December 2, 2013

“मिड डे मील”

प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य दोपहर के वक़्त स्कूल में बनने वाले मिड डे मील की गुणवत्ता को लेकर कई दिनों से परेशान थे. हाल ही में बिहार के परिषदीय विद्यालयों में हुयी घटनाओं ने उनकी परेशानी को और उभार दिया था. उन्होंने कई बार गाँव के प्रधान से इसकी शिकायत की, की ‘दुकानदार ख़राब स्तर की खाद्य सामग्री (राशन) विद्यालय को भेजता है’, पर बात नहीं बनी. सामने तो ग्राम प्रधान भी प्रधानाचार्य की बात में अपना सुर मिला देते थे, ‘बच्चों को मध्याह्न भोजन के रूप में उच्च गुणवत्ता का भोज्य पदार्थ मिलना उनका हक है, और इसके लिए हमसे जो कुछ भी बन पड़ेगा हम करेंगे.’ पर शायद ग्राम प्रधान भी, प्रधानाचार्य की पीठ पीछे दुकानदार से मिले हुए थे और प्रधानाचार्य की लाख शिकायत के बावजूद कही कुछ नहीं सुधर रहा था.
ऐसे ही चल रहा था की एक दिन प्रधानाचार्य को इच्छा हुयी की बच्चों को आज मेनू से अलग खीर बना कर खिलाई जाय. व्यवस्था होने लगी. सभी सामग्री इकठ्ठा की गयी. पर खीर के लिए ‘मेवे’ भी चाहिए थे. सो दुकानदार से मेवे भी भिजवाने को कहा गया.
रोज के ‘मेनू’ से अलग, आज मेवे की मांग देखकर, पहले तो दुकानदार सकपकाया, किन्तु फिर उसने मेवे दे दिए. उसके दिए हुए ख़राब मेवों को देखकर प्रधानाचार्य से ना रहा गया. वो उसी सामग्री को लेकर दुकानदार के पास पहुंचे और शिकायत भरे लहजे में कहा, “क्या भाई! तुम्हारी दुकान में जो भी ख़राब सामग्री होती है वो तुम विद्यालय में भिजवा देते हो. पैसे तो तुम्हे पूरे मिलते है, फिर सामान ख़राब गुणवत्ता का क्यों?”
दुकानदार से यह शिकायत सुनी नहीं गयी, उसने कहा, “मास्टर साहब! हमारी दुकान में यही है और ग्राम प्रधान का यही आदेश भी है की ऐसी सामग्री ही विद्यालय में भिजवाई जाय.”
प्रधानाचार्य ने कहा, “पर क्या तुम्हे दिख नहीं रहा की इन मेवों में घुन लग गया है. भला इसे कोई कैसे खा सकता है.”
दुकानदार ने तुरंत ही जवाब दिया, “मास्टर साहब! आप क्यों परेशान होते हो? ये मेवे मैंने आपको या आपके घर के बच्चों को खाने के लिए थोड़े ही दिए है? ये तो आपके विद्यालय के बच्चों को खाने के लिए है.” इतना कहकर दुकानदार अपने काम में व्यस्त हो गया.
प्रधानाचार्य निरुत्तर हो चुके थे. उन्होंने सोचा, ‘सच में, ये मेरे खाने के लिए नहीं, ये तो बच्चों के खाने के लिए है!’ और वो उसी मेवों के साथ विद्यालय वापस आ गए. दुकानदार ने उन्हें मिड डे मील के मायने समझा दिए थे.

जितेन्द्र गुप्ता   

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