Sunday, December 15, 2013

ईश्वर का चश्मा

शाम का अँधेरा घिर रहा था और मैं सदभावना ब्रिज पर खड़ा, गोमती नदी को बहता देख रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैंने चिंहुक कर उसकी तरफ देखा। वो एक अनजान बूढ़ा सा दिखने वाला शख्श था।
"क्या तुम इसे मेरे लिए पढ़ सकते हो बेटा?" उस अजनबी व्यक्ति ने मुझसे कहा। उसके हाथ में समाचार पत्र का एक टुकड़ा था।
"माफ़ कीजिये पर इसकी लिखावट बहुत महीन है और इतने अँधेरे में मैं इसे नहीं पढ़ पा रहा।" मैंने उस व्यक्ति से अपनी असमर्थता जाहिर की।
"कोई बात नहीं। मैंने इसे खुद पढ़ने कि कोशिश की थी पर अपना चश्मा घर भूल आने की वजह से मुझे पढ़ने में तकलीफ़ हो रही है ।" उस अजनबी ने कहा और फिर वो भी मेरी तरह नदी की तरफ मुंह करके खड़ा हो गया। 
कुछ देर चुप रहने के बाद उस अजनबी ने कहा, "क्या तुम्हे पता है कि आँखे कमजोर होने कि बीमारी केवल इंसानों में ही नहीं है बल्कि इस बीमारी से ईश्वर भी ग्रसित है।"
"हां, शायद ईश्वर भी अब आपकी तरह बूढ़ा हो चला है इसलिए उसकी भी नज़र कमजोर हो गयी होगी?" मैंने मजाक करने की कोशिश की पर वो शख्श गम्भीर था।
"नहीं, बुढ़ापे कि वजह से नहीं बल्कि ईश्वर खुद चाहता है कि उसकी नज़रे हमेशा कमजोर ही रहे इसलिए उसने खुद को कमजोर नज़रो कि बीमारी से ग्रस्त कर रखा है।" उस अजनबी ने कहा।
"भला कोई अपनी नज़रे खुद से क्यों कमजोर करना चाहेगा?" मैंने उसकी बात पर सवाल किया।
"क्यों कि इस तरह से वो हमेशा ये बहाना बना सकता है कि उसकी नज़रें कमजोर हो जाने कि वजह से आज दुनिया में अपराध और भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गए है। और वो इस दुनिया की पहले कि तरह देखभाल नहीं कर पा रहा।" उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा।
"चलिए मान लेते है कि ईश्वर, कमजोर दृष्टि का बहाना बना कर अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को माफ़ कर देता है पर उनका क्या जो आज के इस घोर कलयुग में भी सच्चाई और ईमानदारी कि मशाल जलाये हुए है? क्या यह उनके साथ अन्याय नहीं कि ईश्वर कि कमजोर दृष्टि इन भले लोगों पर भारी पड़ रही है और ईश्वर उन्हें भी नज़रअंदाज़ कर दे रहा है?" मैंने उस अजनबी से प्रतिवाद किया। "क्या ईश्वर को नहीं लगता कि उसे अपनी नज़रे ठीक रखनी चाहिए और इन भले और ईमानदार लोगों की, भ्रष्ट और बेईमान लोंगो से सुरक्षा करनी चाहिए?"
वह अजनबी कुछ देर खामोश रहा फिर उसने कहा, "बेशक! ईश्वर कि नज़रें कमजोर हो चली है पर उसकी कृपा दृष्टि आज भी भले और ईमानदार लोगो पर बनी हुयी है।"
"कैसे?" मैंने पुनः पूछा।
"क्योंकि ईश्वर अपना चश्मा हम इंसानों कि तरह घर पर नहीं भूल जाता बल्कि चश्मा पहन कर वो उन भले और ईमानदार लोगो कि भी सुरक्षा करता रहता है।" उस अजनबी ने कहा और वापस नदी कि तरफ देखने लगा

जितेन्द्र गुप्ता 

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