भटकता रहता हूँ,
लेकर अपना तन को,
ताकि मिल सके सुकून,
मेरे इस मन को।
तलाश जारी रहती है,
ना जाने किस सुकून की,
दिन-रात, सुबह -शाम,
यहां -वहां, इधर-उधर।
भटकाव खत्म नही होता,
इच्छाएं कभी नही मरती,
अभिलाषा जिंदा रहती है,
मरता हूँ तो सिर्फ मैं।
पल-प्रतिपल, क्षण-प्रतिक्षण,
कभी न बुझने वाली आग,
दिल मे जलाये रखता हूँ, या
खुद जलता रहता हूं।
जितेंद्र
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