फिर याद आयी वह जमीं ;
फिर याद आया वह जहाँ ;
जो है यहाँ से दूर, फिर भी ,
दिल है करता जा वहाँ।
फिर याद आयी वही धूप ;
फिर याद आयी वह हवा ;
जो आ रही है यहाँ तक ,
पैगाम लेकर जा वहाँ।
पर भ्रम जो टूटा ;
खुद से पूछा-
"यह बता-
तू है कहाँ?"
आवाज आयी-
मन ही मन;
ये भ्रम है तेरा
कुछ बड़ा।
"कर्त्तव्य पथ पर,
चल ओ राही!
सोच मत-
तू है कहाँ?"
"तू रह यहाँ, या रह वहाँ ;
तू रह यहाँ चाहे जहाँ ;
निज प्राण तो यह भूमि है;
आकाश तेरा तन यहाँ। "
जितेन्द्र गुप्ता
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