Sunday, February 23, 2014

हवा

फिर याद आयी वह जमीं ;
फिर याद आया वह जहाँ ;
जो है यहाँ से दूर, फिर भी ,
दिल है करता जा वहाँ। 

फिर याद आयी वही धूप ;
फिर याद आयी वह हवा ;
जो आ रही है यहाँ तक ,
पैगाम लेकर जा वहाँ। 

पर भ्रम जो टूटा ;
खुद से पूछा- 
"यह बता-
तू है कहाँ?"

आवाज आयी-
मन ही मन;
ये भ्रम है तेरा 
कुछ बड़ा। 

"कर्त्तव्य पथ पर,
चल ओ राही! 
सोच मत-
तू है कहाँ?"

"तू रह यहाँ, या रह वहाँ ;
तू रह यहाँ चाहे जहाँ ;
निज प्राण तो यह भूमि है;
आकाश तेरा तन यहाँ। "

जितेन्द्र गुप्ता 

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