Wednesday, September 11, 2013

‘ईश्वर को पत्र'

प्रिय ईश्वर;

समझ में नहीं आता की तुम्हे किस नाम से बुलाऊ; क्यों कि अगर मैं तुम्हे भगवान कहता हूँ तो लोग मुझे हिन्दू समझेंगे; अल्लाह कहूँ तो मुसलमान; वाहे गुरु कहूँ तो सिख; और अगर मैं तुम्हे गॉड कहता हूँ तो मुझे ईसाइ समझा जायेगा. अजीब बात है न क्यों कि ये सारे नाम तुम्हारे हैं, मैं तुम्हे किसी भी नाम से बुलाऊ; याद तो तुम्हे ही करूँगा. पर मैं तुम्हे जिन नामों से बुलाऊंगा, मेरी वैसी ही पहचान बन जाएगी. खैर; मैं तुम्हे यहाँ ईश्वर के नाम से बुलाऊंगा; आशा है कि तुम मेरी बात समझ जाओगे.
तुम्हे याद होगा, करोड़ों साल पहले, जब तुमने यह सृष्टी और यह धरती बनायीं थी तो तुमने अन्य वस्तुओं के साथ इंसानों की भी रचना की थी. शायद यह सोचकर की इंसान धरती पर दुसरे इंसानों से प्रेम करेगा और अपना जीवन जीने के लिए वस्तुओं का इस्तेमाल करेगा. लेकिन शायद मुझे यह बताने की जरुरत नहीं है की इंसानों ने तुम्हारी बनायीं इस दुनिया का क्या हाल कर रखा है? आज एक इंसान दुसरे इंसान का अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर रहा है और वस्तुओं से प्रेम कर रहा है. कही ऐसा तो नहीं कि तुम हमें बनाकर भूल गए हो, और  इन मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों या चर्चों में कही गहरी नींद में सो रहे हो?
Image Courtesy: Vinayak Gupta
मैंने कई बार सोचा की तुम्हे एक पत्र लिखूं, और इस धरती के हालात से वाकिफ कराऊँ, पर मुझे तुम्हारा पता ही नहीं मालूम था. और जब मैंने कई संतों, मौलवियों और पादरियों से तुम्हारा पता पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि तुम मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों में रहते हो. मैंने कई पत्र लिखे और मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों को पोस्ट भी किये पर मुझे कभी कोई उत्तर नहीं मिला. इससे मैंने यह अंदाज़ा लगाया की तुम इन जगहों पर रहते ही नहीं होगे, वरना तुम मेरे पत्रों के जवाब अवश्य देते. मेरी खोज जारी थी की इसी बीच मुझे मेरे बचपन की एक बात याद आयी, जो की मेरे गुरूजी अक्सर कहा करते थे. ‘हर जीव के अन्दर ईश्वर का निवास होता है.’ और तब जाकर मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ की मैंने तुम्हे गलत जगहों पर ढूढने की कोशिश की थी. तुम तो मेरे अन्दर ही विद्यमान हो, और मेरे ही अन्दर क्यों, जितने जीव-जंतु इस धरती पर है सब के अन्दर, यानि तुम हर इंसान के अन्दर रहते हो. पर मेरी ही तरह आजकल के ये इंसान, यह बात भूल गए है. वो अभी भी तुम्हे मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों में ढूंढने जाते है. कभी-कभी तो वो तुमको लेकर इतने भावुक हो जाते है की तुम्हारे नाम पर दंगा-फसाद भी करते है. कोई इसको ‘धर्म-युद्ध’ कहता है तो कोई ‘जिहाद’. मुझे समझ में नहीं आ रहा की लोंगो को, खुद के नाम पर लड़ता हुआ देखकर भी, तुम चुप कैसे हो?
तुम्हे जानकार आश्चर्य होगा की एक इंसान, धर्म के नाम पर, दुसरे इंसान की हत्या कर देता है. जहाँ तक मुझे मालूम है की तुमने ‘धर्म’ जैसी कोई चीज नहीं बनायीं थी. यह तो पूरी तरह इंसानी दिमाग की उपज थी. आज भी दुनिया में कई पुस्तकें है, जिन्हें लोग धार्मिक पुस्तकें कहते है, जैसे वेद-पुराण, गीता, कुरान और बाइबिल इत्यादि. लोंगो का कहना है की ये किताबें तुमने लिखी है. क्या वास्तव में ऐसा है? और अगर ऐसा है तो इतनी अलग-अलग किताबें लिखने के बजाय तुमने केवल एक किताब ही क्यों नहीं लिखी जिसे हर इंसान पढ सकता? अलग-अलग किताबें पढने से लोंगो को अलग-अलग विचार आते है, और उनमे उंच-नीच का भाव पैदा होता है. शायद तुम्हे पता नहीं की लोग इन किताबों पर भी झगडा कर लेते है, और मरने-मारने पर उतारू हो जाते है. कोई कहता है की ‘गीता’ महान है तो कोई ‘कुरान’ को महान बता है, कोई बाइबिल को महान बताता है तो कोई ‘गुरुग्रंथ साहिब’ को महान बताने की कोशिश करता है.
प्रिय ईश्वर; मुझे पता है की तुम यह सब देख रहे होगे, और अगर तुम कहीं हो तो तुरंत इस धरती पर आ जाओ, क्यों की परिस्थिति बहुत बिगड़ चुकी है. अगर तुम नहीं आओगे तो तुम्हारी बनायीं इस दुनिया को, तुम्हारी बनायीं सर्वश्रेष्ठ कृति ‘इंसान’ ही नष्ट कर डालेगी. मुझे पता है की तुम बहुत व्यस्त हो पर अपनी बनायीं इस दुनिया के लिए तुम कुछ वक़्त तो निकाल ही सकते हो. तुम्हारे आने का शायद यही सही वक़्त है......
तुम्हारा
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