Sunday, July 22, 2012

"इच्छाओं की चिता"

शाम को सूरज अस्त होने से पहले,
कुछ ज्यादा तेज चमकाने लगता है.
और दिए की लौ बुझने से पहले,
कुछ ज्यादा ही फड़फड़ाने लगती है.

तुफान आने से पहले सन्नाटा पसर जाता है,
और  कुछ देर के लिए ही यह वक़्त ठहर जाता है.
फिर सूरज अस्त हो जाता है, दिया बुझ जाता है,    
और तुफान भी विनाश लीला दिखा कर चला जाता है.

तो अपनी जिंदगी को मैं क्या समझूं,
बुझते हुए दिए की लौ का फड़फडाना, 
तुफान के पहले सन्नाटे का पसर जाना,
या शाम के आकाश में सूरज का अस्त हो जाना.

मेरी कविता भी शायद मेरी सोच की ही एक मिसाल है,
कम शब्दों में लिखी गयी जिंदगी की एक किताब है.
गर बारिश हो जाती तो मुझको सुकून मिल जाता,
पर आँखे मेरी सुखी है और दिल में नैनीताल है.

बचपन से ही जो सपने आँखों में बस गए थे,
उसे दिल के किसी कोने में बहुत गहरे  गाड़ आया हूँ,
गलती से भी कोई वहां ना पहुँच जाए,
इसलिए पूरी तरह से उसको श्मशान बना आया हूँ.

इच्छाओं की चिता से निकली हुयी राख का मैं ढेरी,
या किसी निर्जन देश की सीमाओं का हूँ प्रहरी.
बड़े सपने देखकर छोटो में ही खुश होने लगा हूँ,
जी रहा मैं या मर गया हूँ, दुविधाग्रस्त हो गया हूँ.

जीतेन्द्र गुप्ता 

1 comment:

  1. जीवन में सारे रंग हैं..... हौसला बना रहे

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