बस पत्ते ही झड़े है,
जड़ो से नही सूखा हूँ,
ये मौसम की बेरुखी है,
जो ऐसा हो गया हूँ..
मेरा भी मौसम आएगा,
जब सूरज धरा तपायेगा,
बारिश की बूंदे बरसेंगी,
जब नभ काला हो जाएगा..
उस दिन के इंतज़ार में हूँ,
उस दिन ही पत्ते निकलेंगे,
अभी तो जड़ें गहरा रहा हूँ,
शायद खुद को तलाश रहा हूँ..
जितेंद्र..
बहुत खूब
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